राहुल गांधी ने प्रियंका को महासचिव बनाने के साथ पूर्वी उप्र का प्रभार सौंपकर जताया कि वह इस राज्य में वापसी को लेकर गंभीर हैं।
केवल चुनावों के समय अमेठी और रायबरेली में राजनीतिक सक्रियता दिखाती रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा को यकायक कांग्रेस महासचिव बनाए जाने का फैसला चौंकाने वाला भले हो, लेकिन उसे अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता। एक लंबे अरसे से यह कहा-माना जा रहा था कि वह राहुल गांधी के हाथ मजबूत करने हेतु राजनीति में सक्रिय होंगी। आखिरकार वह न केवल महासचिव बनाई गईं, बल्कि उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार देकर यह बताने की भी कोशिश की गई कि वह हर तरह की राजनीतिक चुनौती का सामना करने को तैयार हैं। लंबे वक्त बाद ऐसा पहली बार होगा, जब नेहरू-गांधी परिवार के दो सदस्य एक साथ राजनीति में सक्रिय नजर आएंगे। भाई-बहन की सियासी सक्रियता से कांग्रेस में परिवारवाद की राजनीति का जो नया रूप देखने को मिलेगा, उससे पार्टी के भीतर के समीकरण भी बदल सकते हैं। लगता है कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने में हुई देरी के कारण प्रियंका के राजनीति में विधिवत प्रवेश में विलंब हुआ। जो भी हो, इसमें दोराय नहीं कि गांधी परिवार का सदस्य होने के नाते ही वह सीधे कांग्रेस महासचिव बनने में सफल रहीं। यह साफ है कि उनके महासचिव बनने से वंशवाद की राजनीति को बल मिला है, लेकिन यह समय बताएगा कि उनकी राजनीतिक सक्रियता कांग्रेस को मजबूती प्रदान करने में कितनी सहायक बनेगी?
यह सही है कि प्रियंका के महासचिव बनने से कांग्रेस कार्यकर्ता उत्साहित होंगे और चुनाव के दौरान वह भीड़ को आकर्षित भी करेंगी, लेकिन इसमें संदेह है कि उनकी इंदिरा जैसी कथित छवि उन्हें एक सफल नेता बनाने का काम करेगी। एक तो इंदिरा गांधी को गुजरे हुए अच्छा-खासा समय बीत गया और दूसरे, आज का भारत नया भारत है। आज की पीढ़ी नेहरू-गांधी परिवार के सदस्यों के प्रति आकर्षित तो हो सकती है, लेकिन वह उनका अनुसरण तभी करेगी, जब वे उसकी अपेक्षाओं को पूरा करते दिखेंगे। प्रियंका मुखर होने के साथ ही राजनीतिक मिजाज अवश्य रखती हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक सोच-समझ की असली परीक्षा होना अभी शेष है। नि:संदेह इसका पता भी आने वाले वक्त में ही चलेगा कि वह पति राबर्ट वाड्रा से जुड़े विवादों का सामना किस तरह करेंगी? बहन प्रियंका को महासचिव बनाने के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार सौंपकर राहुल गांधी ने यही स्पष्ट किया है कि वह उत्तर प्रदेश में वापसी करने को लेकर गंभीर हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश को सियासी तौर पर दो हिस्सों में बांटकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान प्रियंका को शायद इसीलिए दी, ताकि कार्यकर्ताओं को यह संदेश जाए कि मोदी और योगी के गढ़ में कांग्रेस मुकाबले को तैयार है। वह सिर्फ भाजपा के समक्ष ही चुनौती पेश करने नहीं दिख रहे, बल्कि सपा और बसपा को भी यह संदेश दे रहे हैं कि वे उत्तर प्रदेश को अपने लिए खुला मैदान न समझें। यदि पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रियंका और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे कांग्रेस दम-खम दिखाती है तो आम चुनाव त्रिकोणीय मुकाबले की शक्ल ले सकते हैं। पता नहीं ऐसा होगा या नहीं, लेकिन यह स्थिति भाजपा के लिए लाभदायक हो सकती है।
भाई-बहन की जोड़ी
- सम्पादकीय
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