
कांग्रेस के लिए यह भी शुभ संकेत नहीं कि पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके बड़बोले मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तनातनी बढ़ती जा रही है। यदि यह तनातनी और अधिक बढ़ी तो इसका असर कांग्रेस की एकजुटता और साथ ही उसकी छवि पर भी पड़ेगा। पार्टी नेतृत्व को इसकी चिंता करनी चाहिए कि पंजाब में कांग्रेस आपसी कलह का शिकार न होने पाए।
कांग्रेस नेतृत्व को यह समझना होगा कि अगर मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के रुख-रवैए से नाखुश हैं तो इसके लिए उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। नवजोत सिद्धू एक अरसे से यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें अमरिंदर सिंह की परवाह नहीं है। भले ही नवजोत सिद्धू यह कह रहे हों कि उन्हें हल्के में लिया जा रहा है, लेकिन सच यही है कि वह खुद मुख्यमंत्री को यथोचित महत्व देने को तैयार नहीं दिख रहे हैं। क्या ऐसा इसलिए है, क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व उनकी पीठ पर हाथ रखे हुए है?
सच्चाई जो भी हो, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पंजाब के साथ-साथ अन्य अनेक राज्यों में भी कांग्रेस गुटबाजी और दिशाहीनता से ग्रस्त है। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच सब कुछ सही नहीं दिख रहा है। जैसे यह नहीं पता कि राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष बने रहेंगे या नहीं, वैसे ही इस बारे में भी संशय ही अधिक है कि विभिन्न् राज्यों के पार्टी अध्यक्ष अपने-अपने पद पर बने रहेंगे या नहीं? सबसे खराब बात यह है कि कांग्रेस नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार की ओर से ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं, जैसे लोकसभा चुनावों में पराजय के लिए उसके अलावा अन्य सब जिम्मेदार हैं। कहीं राज्यों के नेतृत्व पर दोष मढ़ा जा रहा है तो कहीं सहयोगी दलों पर। इसके अतिरिक्त यह भी प्रतीति कराई जा रही है कि भाजपा गलत तौर-तरीके अपनाकर चुनाव जीत गई। इस सबसे तो यही लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व हार के मूल कारणों से जानबूझकर मुंह मोड़ रहा है। ऐसा करना मुसीबत मोल लेना ही है।