तत्कालीन मेयर सहित स्मार्ट सिटी के तत्कालीन अधिकारी भी शामिल
भ्रष्टाचार उजागर होने के बावजूद शासन कार्रवाई क्यों नहीं कर रही

publicuwatch24.-रायपुर। स्मार्ट वहीं होता है जो सब कुछ पचा जाए, और बिना डकार के अरबों को पानी की तरह गटक जाए। रायपुर को भी अभिशाप है कि जब शहर को सजाने संवारने और सुंदर बनाने की सोच धरातल पर उतरेगी और फंड जारी होते ही सत्ता धारी दल के नेता और अधिकारी उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ेंगे। पिछले 25 सालों से राजधानी का तमगा लगाए रायपुर देश दुनिया को बता रहा है है कि मैं सबसे स्मार्ट हो गया हूं। यह आइना निगम के तत्कालीन सत्ताधारी दल के नेता और तत्कालीन अधिकारी शहर की जनता में यह भ्रम फैला कर राजनीति करने की सबसे निम्न स्तरीय सोच की साजिश की हिस्सा है। रायपुर का जो भी मेयर बना वह काजल की कोठरी बनी स्मार्ट सिटी की कालिख से बच नहीं पाया है। शहर में बने चौक -चौराहे स्मार्ट टायलेट, पिंक टाय़लेट और अन्य विकास कार्य अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहे न कोई जनआंदोलन हो रहा न ही अधिकारी और नेता इस विषय पर कुछ बोलना पंसद कर रहे है स्मार्ट सिटी के पैसों को जमकर दुरूपयोग औऱ दोहन किया गया । नगर निगम प्रशासन और राज्य सासन को इस मामले को संज्ञान में लेकर तत्तकाल कार्रवाई करने से कई अधिकारी और नेता जेल की शोभा बढ़ा सकते है।
2023 के पहले तत्कालीन विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने विधानसभा में स्मार्ट सिटी को लेकर विधानसभा में सवाल उठाया था कि रायपुर कों स्नू-पावडर लगाने के लिए केंद्र सरकार से 10 करोड़ का फंड मिला था उसे कहां खर्च किया गया तथा रायपुर को स्मार्ट बनाने के कितने काम हुए । इसके जवाब में तत्कालीन नगरीय निकाय मंत्री डा. शिवडहरिया ने विधानसभा में बताया था कि रायपुर को स्मार्ट बनाने कुल 9615 कार्य स्वीकृत हुए थे, जिसपर 1327करोड़ 39 लाख 32 हजार जिस पर खर्च किया गया।
10 हजार करोड़ स्मार्ट सिटी के लिए मंजूरी अब तक हो चुकी है जिसमें 2000 तत्कालीन मेयर औऱ 8000 करोड़ अधिकारी स्मार्ट सिटी के तत्कालीन महाप्रबंधक, औऱ ठेकेदारों ने 10 हजार करोड़ कहा खचर् किए आज तक इसका हिसाब अनुत्तर है। पिछले 25 सालों से रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने के नाम तरह-तरह के छल प्रपंच किया गया. इसका एक फायदा यह हुआ कि रायपुर भले ही स्मार्ट न हुआ हो लेकिन अधिकारियों औऱ सत्तादारी काबिज पार्टी की छवि जरूर स्मा्र्ट हो गई। स्मार्ट सिटी के नाम पर लूट की छूट का फायदा अधिकारियों ने भऱपूर उठाया । स्मार्ट सिटी द्वारा निर्मित स्मार्ट शौचालय जो रायपुर शहर में कबाड़ बन चुके थे।
स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने एक और नया कारनामा कर दिखाया । जनता के करोड़ों रूपए से निर्मित स्मार्ट शौचालय को पहले तो निर्माण गैर जरूरी तरीके निर्माण किया अब उसके उपरांत उसको मेंटेन नहीं किया । मेंटेन करने के नाम पर किसी प्रकार के कोई रखरखाव के लिए न तो स्टाफ रखा न केयरटेकर की नियुक्ति की गई जिसकी वजह से करोड़ों रुपए के शौचालय रायपुर शहर में कबाड़ बन गए। अब स्मार्ट सिटी का नया करनामा सभी स्मार्ट शौचालय को टीना और ग्रिल लगाकर सील पैक कर दिया गया। अब सवाल उठता है कि जब इसका उपयोग होना ही नहीं था और तो इसका निर्णाण क्यों किय़ा गया। क्या सरकारी धन को इसी तरह बर्बाद करना स्मार्ट सिटी का आइडिया है। स्मार्ट का उपयोग जनता नहीं कर सकती ये कैसा स्मार्टनेस है।
रायपुर की जनता को स्मार्ट सुविधा देने के नाम पर करोड़ रूपया खर्च हो गया औऱ जनता उसका उपयोग न करें तो इस सुविधा का क्या औचित्य था। अधिकािरयों ने अपनी मनमानी का जो हठधर्मिता दिखाया उसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।इस तरह के स्मार्ट शौचालय का क्या औचित्य था करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए शौचालय सील पैक कर दिया गया।अरबों रुपए खर्च कर राजधानी रायपुर को स्मार्ट टायलेट बनाने की कवायद भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया, जिसे छुपाने के लिए अब शहर में सार्वजनिक स्थलों में बनाए गए स्मार्ट टायलेट में खामियों के चलते उसे बंद कर दिया गया है। जनता के पैसों का किस तरह बर्बाद करते है इसका नमूना रायपुर में बनाए गए स्मार्ट टायलेट को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। निगम में अरबों रुपए के फंड को देखकर स्मार्ट सिटी नामक कंपनी बनाकर स्मार्ट काम सडक़ गार्डन, तालाब के स्कूल के सौंदर्यीकरण के साथ जनता को सुविधा देने के नाम पर पांच साल तक लूट मचाया। अब निगम में सत्ता बदलने के साथ अपने काले कारनामे छुपाने के लिए सारे स्मार्ट शौचालय को बंद कर सुनियोजित पर्दा डाल दिया है ताकि कोई इस मामले को मुद्दा न बना सके और अधिकारियों के काले कारनामे हमेशा के लिए दफन हो जाए।
इस मामले में केंद्र सरकार, नगर निगम और मु यमंत्री कार्यालय संज्ञान में लेकर उचित कार्रवाई करना चाहिए। तत्कालीन स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन महापौर के खिलाफ अमानत में यानत का मामला जनता के पैसे की बर्बादी का मामला पहली नजर में बनता है। आवश्यक हुआ तो उच्च स्तरीय जांच करना भी जरूरी है । तत्कालीन महापौर ने स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के साथ मिलकर इतना बड़ा कारनामा कर करोड़ की लूट जनता के पैसे की कर डाली। स्मार्ट सिटी के नाम पर कहीं पर भी शौचालय का निर्माण बिना सोचे समझे सिर्फ निगम के पैसों को वाट लगाने का तरीका अपनाया। ताकि जल्द से जल्द स्मार्ट सिटी के अधिकारी और तत्कालीन भ्रष्ट महापौर को तत्काल ठेकेदार से कमीशन मिल सके । अनाप-शनाप कहीं भी स्मार्ट सिटी की योजनाओं के नाम पर पैसा बर्बाद किया गया। इसका जीता जागता उदाहरण के स्मार्ट शौचालय जो सील पैक होकर बंद पड़े है। आखिर बंद करने का निर्णय किसने लिया क्या वर्तमान एमआईसी ने लिया या फिर पूर्व में तत्कालीन एमआईसी का निर्णय था। इसकी भा जांच होनी चाहिए तािक जनता को पता लगे कि जिसको हमने शहर की चाबी सौंपी वही लुटेरा निकला।